कृत्रिम नेत्र: आशा की नई किरण
केजीएमयू नेत्र रोग विभाग की पहल
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने कृत्रिम नेत्र के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रगति की है। जिन लोगों ने किसी दुर्घटना, बीमारी या जन्मजात विकार के कारण अपनी आंख गंवा दी हो, उनके लिए एक अच्छी तरह से निर्मित कृत्रिम नेत्र न सिर्फ उनकी खोई हुई सुंदरता को लौटाता है, बल्कि उनके जीवन में आत्मविश्वास और आशा की नई किरण भी जगाता है।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव – एक अच्छी तरह से निर्मित कृत्रिम नेत्र चेहरे के सौंदर्य में सामंजस्य स्थापित करता है। साथ ही आंख के बाहरी ढांचे के सही विकास में भी सहायक होता है। यह व्यक्ति के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की वरिष्ठ ऑक्युलोप्लास्टिक सर्जन डॉ. अपजीत कौर कहती हैं, “कृत्रिम नेत्र केवल सौंदर्य सुधार का साधन नहीं है, यह व्यक्ति के आत्मविश्वास और सामाजिक समावेशन को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सही तकनीक और देखभाल से, यह न सिर्फ चेहरों की खूबसूरती बल्कि जिंदगियों में भी नया उत्साह भर देता है।” यह समाज में किसी प्रकार के भेदभाव या असहजता की भावना को कम करने में भी सहायक सिद्ध होता है। यह पॉलिमेथिल मैथाक्रिलेट का बना है। इसकी माप ली जाती है। सटीक माप लेने में लगभग 1 घंटा लग जाता है। पूरी आंख के सटीक माप और तैयार करने में 3 से 4 दिन लगते हैं। रोगी को 1 हफ्ते बाद बुलाया जाता है। उसके बाद हर तीन महीने में एक बार एक वर्ष तक रोगी को बुलाया जाता है। कृत्रिम आंख से देखा नहीं जा सकता है।
रोगियों का अनुभव :
- रामकुमार वर्मा (परिवर्तित नाम), 45 वर्ष, कहते हैं, “दुर्घटना के बाद मेरा आत्मविश्वास बिल्कुल टूट चुका था। कृत्रिम नेत्र लगने के बाद मुझे ऐसा लगा मानो मैंने अपनी खोई हुई पहचान फिर से पा ली हो। अब मैं लोगों से खुलकर बात कर सकता हूं, बिना किसी झिझक के।”
- नीता अग्रवाल (परिवर्तित नाम), 2 वर्ष बालिका की माता साझा करती हैं, “रेटिनोब्लास्टोमा नामक कैंसर के कारण बच्ची को ऑपरेशन द्वारा अपनी आंख हटवानी पड़ी। कृत्रिम नेत्र ने न केवल उसके चेहरे की सुंदरता को बहाल किया, बल्कि उसके भीतर के डर और संकोच को भी दूर कर दिया। अब वह जीवन को नई आशा के साथ देखेगी।