बीज पर 95 रुपये प्रति किग्रा की दर से मिलता है अनुदान

2025-26 के लिए सरकार ने 9846 रुपये प्रति कुन्तल तय किया तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य

लखनऊ : योगी सरकार तिल की खेती करने वाले किसानों को भी सहारा दे रही है। सरकार बीज पर अनुदान देकर लागत कम और उत्पादन अधिक करने में किसानों की सहायता कर रही है। खरीफ में यूपी में लगभग पांच लाख हेक्टेयर में तिल की खेती की जाती है। कृषि विभाग तिल के बीजों पर 95 रुपये प्रति किग्रा की दर पर अनुदान उपलब्ध करा रहा है। सीएम योगी के निर्देश पर तिल की खेती के लिए कृषि विभाग किसानों को वैज्ञानिक विधि भी सीखा रहा है। तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9846 रुपये प्रति कुंतल है।


खरीफ मौसम में उत्तर प्रदेश मे लगभग 5.0 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में तिल की खेती की जाती है। तिल की खेती विशेष रूप से असमतल (जहां जलभराव में समस्या न हो) भूमि में कम वर्षा वाले क्षेत्र में की जा सकती है। तिल की खेती में कृषि निवेश न के बराबर लगता है, परन्तु तिल का बाजार मूल्य अधिक होने के कारण प्रति इकाई क्षेत्रफल में लाभ होने की सम्भावना अधिक है।


तिल की प्रमुख प्रजातियां आर0टी0-346 एवं आर0टी0-351,गुजरात तिल-6, आर0टी0-372, एम0टी0-2013-3 एवं बी0यू0ए0टी0तिल-1 हैं। कृषि विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा तिल के उत्पादों को प्रोत्साहित करने के लिए इसके बीजों पर 95 रुपये प्रति किग्रा की दर पर अनुदान उपलब्ध कराया जा रहा है। तिल के बीज बोने से पहले थिरम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा से बीजोपचारित करने से मृदा एवं बीज जनित रोगों से बचाव किया जा सकता है तथा बीजों में अंकुरण बेहतर होता है या जैविक कीटनााशी ट्राइकोडर्मा 4 ग्रा0 प्रति कि0ग्रा0 की दर से बीज उपचारित किया जा सकता है।


डबल इंजन सरकार ने 2025-26 के लिए तिल का न्यूनतम समर्थन मूल्य 9846 रुपये प्रति कुन्तल तय किया है। वहीं 2015-16 में तिल का एमएसपी 4700 रुपये प्रति कुंतल था। सरकार ने 10 वर्ष में यह बढ़ोतरी दोगुने से अधिक कर तिल की खेती करने वाले किसानों को बड़ी सौगात दी है। तिल के सफल उत्पादन के लिए उन्नत कृषि तकनीक, फसल सुरक्षा उपायों पर विशेष बल दिया गया है। लाइन में बुआई व पैकेज ऑफ प्रैक्टिसेज का प्रचार-प्रसार किया गया। सरकार ने उन्नतशील प्रजातियों को प्रोत्साहित किया और अनुदान में बढ़ोतरी की।


खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के तुरंत बाद पेडीमेथालिन का उपयोग किया जा सकता है। तिल में सिंचाई बरसात की स्थिति में आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन फूल आने व दाना भरने की अवस्था मे सिंचाई जरूरी है। तना एवं फल सड़न बीमारी के रोकथाम हेतु थायोफेनेट मिथाइल या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव तथा पत्ती झुलसा रोग के लिए मैनकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का प्रयोग आवश्यक है। तिल में कीटों के बचाव हेतु क्विनालफाक्स या डाइमेथोएट का छिड़काव का प्रयोग आर्थिक क्षति स्तर से अधिक क्षति होने पर ही करना चाहिए। कृषि विभाग का मानना है कि वर्तमान में किसानों के पास कृषि जोत के रूप में बहुत सी ऐसी भूमि बुवाई से अवशेष पड़ी रहती है, जिसका उपयोग सूक्ष्म सिंचाई साधनों का प्रयोग कर तिल की खेती के रूप में की जा सकती है। इससे किसान अतिरिक्त आय भी प्राप्त कर सकते हैं।

70-80 प्रतिशत फलिया पीली पड़ जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए तथा पौधों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर मडाई की जाये। परम्परागत विधि से तिल की खेती करने पर 4-6 कुन्टल प्रति हेक्टेयर एवं वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर उपज लगभग 8 से 12 कुन्टल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। इस प्रकार वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर किसानों को कम लागत में लगभग एक लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक आय प्राप्त हो सकती है। किसान अधिक जानकारी के लिए राजकीय कृषि रक्षा इकाई/जिला कृषि रक्षा अधिकारी/ कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं।


तिल का उपयोग उच्च पोषकमान (यथा प्रोटीन की मात्रा 20.9 प्रतिशत, वसा 53.5 प्रतिशत परंतु कोलेस्ट्राल की मात्रा शून्य पायी जाती है। इसके साथ ही विटामिन-ए, बी-1, बी-2, बी-6, बी-11, पोटैशियम, कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, मैगनीशियम एवं जिंक) के कारण खाद्य के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। साथ ही औषधीय गुणों (रक्तचाप, रक्तशर्करा एवं कोलेस्ट्राल के स्तर को नियंत्रित करने के साथ ही रोगाणुरोधी तथा कैंसर को नियंत्रित करने के भी गुण भी सम्मिलित हैं) के कारण वर्तमान समय में चिकित्सकों द्वारा तिल के बीज का उपयोग प्रतिदिन करने की संस्तुति की जा रही है। तिल के तेल की गुणवत्ता उच्च स्तर की होने के कारण प्रतिदिन भोजन में सम्मिलित करने का सुझाव भी आयुर्वेद चिकित्सकों द्वारा दिया जा रहा है।


तिल की खेती के लिए गर्म व शुष्क जलवायु की आवश्कता होती है। अच्छी जल निकासी वाली दोमट या हल्की बलुई दोमट भूमि तिल की खेती के लिए उपयुक्त होती है, जिसका पी0एच0माऩ 6.0-7.5 अच्छा माना जाता है। तिल की बुवाई खरीफ सीजन में जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक की जा सकती है। बुवाई की विधि में कतार से कतार की दूरी़ 30-45 सेमी, पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी अधिक उत्पादन के लिए वैज्ञानिकों द्वारा संस्तुति की गयी है।

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